Saturday, 28 December 2013

शीघ्रपतन

बिना सन्तुष्टी के संभोग करते हुए अगर वीर्य स्खलन हो जायें तो उसे शीघ्रपतन कहा जाता है।

कारण : अश्लील वातावरण में रहना, मस्तिष्क की कमजोरी और हर समय सहवास की कल्पना मे खोये रहना यह शीघ्रपतन का कारण बनती है। ज्यादा गर्म मिर्च मसालों व अम्ल रसों से खाद्य-पदार्थो का सेवन करने, शराब पीने, चाय-कांफी का ज्यादा पीना और अश्लील फिल्म देखने वाले, अश्लील पुस्तकें पढ़ने वाले शीघ्रपतन से पीडित रहते हैं।

लक्षण : वीर्य का पतलापन, सहवास के समय स्तंभन (सहवास) शक्ति का अभाव अथवा शीघ्रपतन हो जाना वीर्य का जल्दी निकल जाना।

भोजन तथा परहेज : दिन में खाने के साथ दूध लें, मौसमी फल, बादाम, प्याज और लहसुन का प्रयोग करें। दवा के साथ गुड़, मिर्च, तेल, खटाई, मैथुन, और कब्ज पैदा करने वाली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिएं पत्नी के साथ सहवास के साथ करते समय यह ध्यान रखें कि वाद-विवाद की उलझनों से दूर रहें।

नपुंसकता

परिचय :
जो व्यक्ति यौन संबन्ध नहीं बना पाता या जल्द ही शिथिल हो जाता है वह नपुंसकता का रोगी होता है। इसका सम्बंध सीधे जननेन्द्रिय से होता है। इस रोग में रोगी अपनी यह परेशानी किसी दूसरे को नहीं बता पाता या सही उपचार नहीं करा पाता मगर जब वह पत्नी को संभोग के दौरान पूरी सन्तुष्टि नहीं दे पाता तो रोगी की पत्नी को पता चल ही जाता है कि वह नंपुसकता के शिकार हैं। इससे पति-पत्नी के बीच में लड़ाई-झगड़े होते हैं और कई तरह के पारिवारिक मन मुटाव हो जाते हैं बात यहां तक भी बढ़ जाती है कि आखिरी में उन्हें अलग होना पड़ता है। कुछ लोग शारीरिक रूप से नपुंसक नहीं होते, लेकिन कुछ प्रचलित अंधविश्वासों के चक्कर में फसकर, सेक्स के शिकार होकर मानसिक रूप से नपुंसक हो जाते हैं मानसिक नपुंसकता के रोगी अपनी पत्नी के पास जाने से डर जाते हैं। सहवास भी नहीं कर पाते और मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है।

कारण : नपुंसकता के दो कारण होते हैं- शारीरिक और मानसिक। चिन्ता और तनाव से ज्यादा घिरे रहने से मानसिक रोग होता है। नपुंसकता शरीर की कमजोरी के कारण होती है। ज्यादा मेहनत करने वाले व्यक्ति को जब पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता तो कमजोरी बढ़ती जाती है और नपुंसकता पैदा हो सकती है। हस्तमैथुन, ज्यादा काम-वासना में लगे रहने वाले नवयुवक नपुंसक के शिकार होते हैं। ऐसे नवयुवकों की सहवास की इच्छा कम हो जाती है।

लक्षण : मैथुन के योग्य न रहना, नपुंसकता का मुख्य लक्षण है। थोड़े समय के लिए कामोत्तेजना होना, या थोड़े समय के लिए ही लिंगोत्थान होना-इसका दूसरा लक्षण है। मैथुन अथवा बहुमैथुन के कारण उत्पन्न ध्वजभंग नपुंसकता में शिशन पतला, टेढ़ा और छोटा भी हो जाता है। अधिक अमचूर खाने से धातु दुर्बल होकर नपुंसकता आ जाती है।

हेल्थ टिप्स : नपुंसकता से परेशान रोगी को औषधियों खाने के साथ कुछ और बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे सुबह-शाम किसी पार्क में घूमना चाहिए, खुले मैदान में, किसी नदी या झील के किनारे घूमना चाहिए, सुबह सूर्य उगने से पहले घूमना ज्यादा लाभदायक है। सुबह साफ पानी और हवा शरीर में पहुंचकर शक्ति और स्फूर्ति पैदा करती है। इससे खून भी साफ होता है।

नपुंसकता के रोगी को अपने खाने (आहार) पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। आहार में पौष्टिक खाद्य-पदार्थों घी, दूध, मक्खन के साथ सलाद भी जरूर खाना चाहिए। फल और फलों के रस के सेवन से शारीरिक क्षमता बढ़ती है। नपुंसकता की चिकित्सा के चलते रोगी को अश्लील वातावरण और फिल्मों से दूर रहना चाहिए क्योंकि इसका मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इससे बुरे सपने भी आते हैं जिसमें वीर्यस्खलन होता है।

युवा शक्ति के लिए सेहत के नुस्खे

इन सर्दियों में यदि आप अपनी सेहत बनाने की सोच रहे हैं तो सबसे पहले पेट साफ करने की जरूरत है। पेट में कब्ज रहेगा तो कितने ही पौष्टिक पदार्थों का सेवन करें, लाभ नहीं होगा। भोजन समय पर तथा चबा-चबाकर खाना चाहिए, ताकि पाचन शक्ति ठीक बनी रहे, फिर पौष्टिक आहार या औषधि का सेवन करना चाहिए।
आचार्य चरक ने कहा है कि पुरुष के शरीर में वीर्य तथा स्त्री के शरीर में ओज होना चाहिए, तभी चेहरे पर चमक व कांति नजर आती है और शरीर पुष्ट दिखता है।हम यहाँ कुछ ऐसे पौष्टिक पदार्थों की जानकारी दे रहे हैं, जिन्हें किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक के लोग सेवन कर लाभ उठा सकते हैं और बलवान बन सकते हैं-

सोते समय एक गिलास मीठे गुनगुने गर्म दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पीना चाहिए।

दूध की मलाई तथा पिसी मिश्री जरूरत के अनुसार मिलाकर खाना चाहिए, यह अत्यंत शक्तिवर्द्धक है।

एक बादाम को पत्थर पर घिसकर दूध में मिलाकर पीना चाहिए, इससे अपार बल मिलता है। बादाम को घिसकर ही उपयोग में लें।

छाछ से निकाला गया ताजा माखन तथा मिश्री मिलाकर खाना चाहिए, ऊपर से पानी बिलकुल न पिएँ।

50 ग्राम उड़द की दाल आधा लीटर दूध में पकाकर खीर बनाकर खाने से अपार बल प्राप्त होता है। यह खीर पूरे शरीर को पुष्ट करती है।

प्रातः एक पाव दूध तथा दो-तीन केले साथ में खाने से बल मिलता है, कांति बढ़ती है।

एक चम्मच असगंध चूर्ण तथा एक चम्मच मिश्री मिलाकर गुनगुने एक पाव दूर के साथ प्रातः व रात को सेवन करें, रात को सेवन के बाद कुल्ला कर सो जाएँ। 40 दिन में परिवर्तन नजर आने लगेगा।

सफेद मूसली या धोली मूसली का पावडर, जो स्वयं कूटकर बनाया हो, एक चम्मच तथा पिसी मिश्री एक चम्मच लेकर सुबह व रात को सोने से पहले गुनगुने एक पाव दूध के साथ लें। यह अत्यंत शक्तिवर्धक है।

सुबह-शाम भोजन के बाद सेवफल, अनार, केले या जो भी मौसमी फल हों, खाएँ।

सुबह एक पाव ठंडे दूध में एक बड़ा चम्मच शहद मिलाकर पीने से खून साफ होता है, शरीर में खून की वृद्धि होती है।

प्याज का रस 2 चम्मच, शहद 1 चम्मच, घी चौथाई चम्मच मिलाकर सेवन करें और स्वयं शक्ति का चमत्कार देखें। यह नुस्खा यौन शक्ति बढ़ाने में अचूक है। ऊपर वर्णित नुस्खे स्त्री-पुरुष दोनों के लिए समान हैं। इन्हें अनुकूल मात्रा में उचित विधि से सुबह-रात को सेवन सेवन करना चाहिए।

सफे द मूसली:- यूनानी चिकित्सा के अनुसार सफेद मूसली का प्रयोग भी बेहद लाभदायक होता है। 15 ग्राम सफेद मूसली को एक कप दूध मे उबालकर दिन मे दो बार पीने से यौन-शक्ति बढ़ती है।

लिंग वृद्धि के उपाय

*  कूटकटेरी, असगंध, वच और शतावरी को तिल के तेल में जला कर लिंग पर लेप करने से लिंग में वृद्धि होती है
*  असगंध चूर्ण को चमेली के तेल के साथ खूब मिलाकर लिंग पर लगाने से लिंग मज़बूत हो जाता है
*  एक लौंग को चबाकर उसकी लार को लिंग के पिछले भाग पर लगाने से संभोग करने की शक्ति तेज हो जाती है।
*  सुखा जौ पीस कर तिल के तेल में मिला कर लिंग पर लगाने से सारे दोष दूर हो जाते हैं
*  20 ग्राम लोंग को 50 ग्राम तिल के तेल में जला कर मालिश करने से लिंग में मजबूती आती है
*  शहद को बराबर मात्रा में एक साथ मिलाकर लिंग पर लेप करने से लिंग में मजबूती आती है।
* हींग को देशी घी में मिलाकर लिंग पर लगा लें और ऊपर से सूती कपड़ा बांध दें। इससे कुछ ही दिनों में लिंग मजबूत हो जाता है।
* भुने हुए सुहागे को शहद के साथ पीसकर लिंग पर लेप करने से लिंग मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है।
* जायफल को भैंस के दूध में पीसकर लिंग पर लेप करने के बाद ऊपर से पान का पत्ता बांधकर सो जाएं। सुबह इस पत्ते को खोलकर लिंग को गर्म पानी से धो लें। इस क्रिया को लगभग 3 सप्ताह करने से लिंग पुष्ट हो जाता है।
* शहद को बेलपत्र के रस में मिलाकर लेप करने से हस्तमैथुन के कारण होने वाले विकार दूर हो जाते हैं और लिंग मजबूत हो जाता है।
* रीठे की छाल और अकरकरा को बराबर मात्रा में लेकर शराब में मिलाकर खरल कर लें। इसके बाद लिंग के आगे के भाग को छोड़कर लेप करके ऊपर से ताजा साबुत पान का पत्ता बांधकर कच्चे धागे से बांध दें। इस क्रिया को नियमित रूप से करने से लिंग मजबूत हो जाता है।
* बकरी के घी को लिंग पर लगाने से लिंग मजबूत होता है और उसमें उत्तेजना आती है।
* बेल के ताजे पत्तों का रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर लगाने से लिंग में ताकत पैदा हो जाती है।
* धतूरा, कपूर, शहद और पारे को बराबर मात्रा में मिलाकर और बारीक पीसकर इसके लेप को लिंग के आगे के भाग (सुपारी) को छोड़कर बाकी भाग पर लेप करने से संभोग शक्ति तेज हो जाती है।
* असगंध, मक्खन और बड़ी भटकटैया के पके हुए फल और ढाक के पत्ते का रस, इनमें से किसी भी एक चीज का प्रयोग लिंग पर करने से लिंग मजबूत और शक्तिशाली बनता है।
* पालथ लंगी का तेल, सांडे का तेल़, वीर बहूटी का तेल,  दालचीनी का तेल़, आधा भाग लौंग का तेल, 4 भाग मछली का तेल को एकसाथ मिलाकर कांच के चौड़े मुंह में भरकर रख लें। इसमें से 8 से 10 बूंदों को लिंग पर लगाकर ऊपर से पान के पत्ते को गर्म करके बांध लें। इस क्रिया को लगातार 1 महीने तक करने से लिंग का ढीलापन समाप्त हो जाता है़, लिंग मजबूत बनता है। इस क्रिया के दौरान लिंग को ठंडे पानी से बचाना चाहिए।
* हीरा हींग को शुद्ध शहद में मिलाकर लिंग पर लेप करने से शीघ्रपतन का रोग जल्दी दूर हो जाता है। लिंग पर इस मलहम अर्थात लेप को लगाने के बाद शीघ्रपतन से ग्रस्त रोगी अपनी मर्जी से स्त्री के साथ संभोग करने का समय बढ़ा सकता है।
* 10 ग्राम दालचीनी का तेल और 30 ग्राम जैतून के तेल को एक साथ मिलाकर लिंग पर लेप करते रहने से शीघ्रपतन की शिकायत दूर हो जाती है, संभोग करने की शक्ति बढ़ती है। इस क्रिया के दौरान लिंग को ठंडे पानी से बचाना चाहिए।
* काले धतूरे की पत्तियों के रस को टखनों पर लगाकर सूखने के बाद संभोग करने से संभोगक्रिया पूरी तरह से और संतुष्टि के साथ संपन्न होती है।.

दूध

दूध पुराने समय से ही मनुष्य को बहुत पसन्द है।

दूध को धरती का अमृत कहा गया है। दूध में विटामिन `सी´ को छोड़कर शरीर के लिए सभी पोषक तत्त्व यानि विटामिन हैं। इसलिए दूध को पूर्ण भोजन माना गया है। सभी दूधों में माता के दूध को श्रेष्ठ माना जाता है, दूसरे क्रम में गाय का दूध है। बीमार लोगों के लिए गाय का दूध श्रेष्ठ है। गैस तथा मन्दपाचनशक्ति वालों को सोंठ, इलायची, पीपर, पीपरामूल जैसे पाचक मसाले डालकर उबला हुआ दूध पीना चाहिए। दूध को ज्यादा देर तक उबालने से उसके पोषक तत्व कम हो जाते हैं और दूध गाढ़ा हो जाता है।

दूध को उबालकर उससे मलाई निकाली जाती है। मलाई गरिष्ठ, शीतल (ठण्डा), बलवर्धक, तृप्तिकारक, पुष्टिकारक, कफकारक और धातुवर्धक है। यह पित, वायु, रक्तपित एवं रक्तदोष को खत्म करती है। गुड़ डाला हुआ दूध मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) को खत्म करता है, यह पित्त और बलगम को बढ़ाती है।

सुबह का दूध विशेषकर शाम के दूध की तुलना में भारी व ठण्डा होता है। रात में पिया हुआ दूध बुद्धिवर्द्धक, टी.बी.नाशक, बूढ़ों के लिए वीर्यप्रद आदि दोषों को खत्म करने वाला होता है। खाने के बाद होने वाली जलन को शान्त करने के लिए रात में दूध पीना चाहिए।

दूध ज्यादा जलन वालों, कमजोर शरीर वालों, बच्चों, जवानों और बूढ़ों सभी के लिए अत्यन्त लाभकारी है। यह जल्दी ही वीर्य पैदा करती है।

भैंस के दूध में चर्बी की मात्रा होने से वह पचने में भारी रहता है। `चरक´ के अनुसार गाय का दूध स्वादिष्ट, शीतल (ठण्डा), कोमल, भारी और मन को खुश करने वाला होता है। बकरी का दूध कषैला, मीठा, शीतल, मन को रोकने वाला तथा हल्का होता है। यह रक्तपित्त, अतिसार (दस्त), क्षय (टी.बी.), खांसी तथा बुखार को दूर करता है। बकरियां कद में छोटी होती हैं और तीखे व कड़वे पदार्थ सेवन करती हैं, पानी कम पीती है, मेहनत अधिक करती हैं। अत: उनका दूध सारे रोगों को खत्म करता है। स्वस्थ बकरी का दूध ज्यादा निरोग माना जाता है। गाय के दूध की तुलना में बकरी का दूध जल्दी पचता है। अत: छोटे बच्चों के लिए यह लाभकारी है।

स्त्री का दूध हल्का, ठण्डा, जलन एवं वायु, पित, आंखों के रोग और ‘शूलनाशक है। यह नाक से सूंघने से तथा आंखों में डालने के लिए गुणकारी है।

अलग-अलग प्राणियों के दूध की अलग-अलग विशेषताएं हैं। भैंस का दूध निद्राकारक (नींद लाने वाला) है। बकरी का दूध खांसी, अतिसार (दस्त) और बुखार को दूर करता है। भेड़ का दूध गर्मी और पथरी को दूर करता है। घोड़ी का दूध गर्म और बलकारी होता है।

ऊंटनी का दूध जलोदर (पेट में पानी भरना) को मिटाता है। गधी का दूध बच्चों को शक्ति प्रदान करता है, और दिल को मजबूत बनाता है यह खांसी में भी ज्यादा लाभकारी है।

यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार-दूध पाचक, दिल-दिमाग को खुश करने वाला, शरीर को कोमल तथा मजबूत बनाने वाला, शरीर की रौनक बढ़ाने वाला, बुद्धिवर्द्धक एवं अर्श (बवासीर), क्षय (टी.बी.) और बुढ़ापे की बीमारियों में लाभकारी है। दुग्धकल्प और दुग्ध आहार : दूध एक सम्पूर्ण आहार होता है। इसमें सभी आवश्यक तत्व उपस्थिति होते हैं। सभी दूधों में भी गायका दूध सर्वाधिक लाभदायक होता है। बशर्तें गाय को आहार  अच्छा दिया जाए और दूध दुहने में स्वच्छता बरती जाए यदि गाय, भैंस और बकरी स्वस्थ है तो सीधे थन से ही अथवा एक उबाल का दूध पीना चाहिए। दूध आहार और दुग्धकल्प में थोड़ा अन्तर है। दूध आहार में दूध के साथ अन्य आहार भी लिया जाता है किन्तु दुग्धकल्प में सिर्फ दूध ही पिया जाता है, वह भी योजनाबद्ध तरीके से ।